History of
Mahisagar Sangam Shrine (tirth) || Mahi River
महिसागर संगम तीर्थ का इतिहास
वागड़ की गंगा
कंठाल की गंगा
आदिवासियों की गंगा
दक्षिण राजस्थान की सवर्ण रेखा
मही नदी पर बांध
मही बजाजसागर बाँध
कडाणा बाँध
सहायक नदियाँ
सोम
नदी
जाखम
नदी
चाप
नदी
अनास
नदी
मोरेन
नदी
इरू
नदी
मही नदी राज्यों से होकर बहती है
मध्य
प्रदेश
राजस्थान
गुजरात
मही नदी का राजस्थान में लम्बाई 171 km है। मही नदी भारत की एकमात्र ऐसी नदी है जो कर्क रेखा को दो बार काटती है। यह भारत की पवित्र नदियो मे से एक है। मही पर एक जलविद्युत ऊर्जा (hydroelectric power) उत्पन्न करने का एक बाँध है, जो गुजरात के महिसागर district में स्थित है जो कडाणा बाँध कहलाता है।
महिसागर district भारत में गुजरात राज्य का एक जिला है जो 26 January 2013 को अस्तित्व में आया, जो राज्य का 28 वां जिला बन गया। जिले को पंचमहल जिले और खेड़ा जिले को मिलाकर बनाया गया है । जिले का नाम महीसागर - मही नदी से दिया गया है। लुनावाड़ा महिसागर जिला का मुख्यालय है। इसने 15 August 2013 से पूर्ण रूप से अपना संचालन शुरू किया।
आनंद तालुका से 17 km दूर vasad डाकोर रोड पर वेराखडी गांव है, जहां प्राचीन काल में मही और सागर का मूल मिलन स्थल (विवाह स्थल) रहा है और Dharnath महादेव आज भी इसके साक्षी हैं।
महीसागर में कब नहाना चाहिए
हर रविवार
हर शनिवार को अमावस्या तिथि हो
सोमवार अमावस्या तिथि
महा
सूद
बीज
लोक
मेला
महाशिवरात्रि
सूर्य
ग्रहण
चंद्रग्रहण
स्कंद पुराण Reference.1
स्कंद पुराण, अध्याय 10 के कुमारिका खंड से लिया गया है। इस अध्याय में राजा इंद्रद्युम्न और उनके दोस्तों ने एक ऐसे तीर्थ के बारे में जानना चाहा जो मोक्ष प्रदान कर सके। श्री नारद मुनि ने उन्हें अपने उत्तर के लिए संवर्त मुनि के पास जाने का सुझाव दिया। संवर्त मुनि से मिलने के बाद राजा इंद्रद्युम्न ने संवर्त मुनि से पूछा..........
महामुने! हम आपकी शरण में आयें हैं। कृपया हमें ऐसा कोई उपाय बताएं, जिससे हम आपके अनुग्रह से मोक्ष प्राप्त कर लें। जिस तीर्थ में जाकर मनुष्य सब तीर्थों का फल प्राप्त कर लेता है, उसका नाम बतलाये, जिससे हम सब लोग जाकर वहां रहें।
संवर्त मुनि ने कहा - स्वामिकार्तिकेय तथा नव दुर्गाओं को नमस्कार करके मैं तुम लोगों को सर्वोत्तम तीर्थ का परिचय देता हूँ। उस तीर्थ का नाम है महीसागरसंगम । ये परम बुद्धिमान इन्द्रद्युम्न जब यहाँ यज्ञ करते थे तब इनके द्वारा यह पृथ्वी दो अंगुल ऊंची कर दी गयी थी। उस समय जैसे गीले काठ के तपने पर उस से पानी चूसता है, उसी प्रकार यज्ञाग्नि द्वारा तपती हुई पृथ्वी से जल का स्त्रोत् टपकने लगा। उस जलराशि को समस्त देवताओं ने नमस्कार किया। वही मही नामक नदी है।
पृथ्वी पर जो कोई भी तीर्थ है, उन सब के जल से उत्पन्न सार रूप मही नदी का जल माना गया है। मालवा नामक देश से मही नदी उत्पन्न हुई है और दक्षिण समुन्द्र में जाकर मिलती है। उसके दोनों तट परम पुण्यमय तीर्थ हैं।
यह सबके लिए कल्याणमयी है ।पहले तो मही नदी स्वयं ही सर्वतीर्थमय है। फिर जहाँ सरिताओं के स्वामी समुद्र से उसका संगम हुआ है। जो बीस हजार छ: सौ नदियाँ इस पृथ्वी पर विद्द्यमान हैं, उन सब के सार तत्व से मही नदी का जल प्रकट हुआ बतलाया गया है।
पृथ्वी के सब तीर्थों स्नान करने से जो फल मिलता है, वही महीसागरसंगम से भी प्राप्त होता है, ऐसा कहा गया है। स्वामिकार्तिकेय का भी इस विषय में ऐसा ही वचन है। यदि तुम लोग किसी एक स्थान में सभी तीर्थों का संयोग चाहते हो तो परम पूण्यमय महीसागरसंगम तीर्थ में जाओ।
आगे स्कंद पुराण में कुछ महत्वपूर्ण तिथि और महीसागरसंगम तीर्थ में भक्ति सेवा करने की प्रक्रियाओं का उल्लेख है ...
महीसागरसंगम में किया हुआ स्नान, दान, जप, होम और विशेषतः पिण्डदान सब अक्षय होता है। पूर्णिमा और अमावस्या के दिन यहाँ किया हुआ स्नान, दान और जप आदि सब कर्म फल देने वाला होता है। देवर्षि नारद ने पूर्वकाल में जब यहाँ स्थान निर्माण किया था उस समय ग्रहों ने आकर वरदान दिया था। शनि देव ने जो वरदान दिया था वह इस प्रकार है –
जिस समय शनिवार के साथ अमावस्या हो, उस समय यहाँ स्नान और दानपूर्वक श्राद्ध करें। यदि श्रावण मास के शनिवार को अमावस्या तिथि हो और दिन सूर्य की संक्रान्ति तथा व्यतीपात योग भी हो तो यह 'पुष्कर' नामक पर्व होता है। इसका महत्व सौ सूर्य ग्रहणों से भी अधिक है।उक्त सभी योगों का सम्बन्ध यदि किसी प्रकार से उपलब्ध हो जाये, तो उस दिन लोहे की शनि मूर्ती का और सोने की सूर्य मूर्ती का महीसागरसंगम में विधि पूर्वक पूजन करना चाहिए। शनि के मंत्रो से शनि का और सूर्य सम्बन्धी मंत्रो से सूर्य का ध्यान करके सभी पापों की शांति के लिए भगवान सूर्य को अर्ध्य देना चाहिए। उस समय यहाँ का स्नान प्रयाग से भी अधिक है, दान कुरुक्षेत्र से भी बड़कर है।महान पुण्यराशि सहायक हो तभी यह सब योग प्राप्त होता है। यहाँ किये हुए श्राद्ध से पितरों को स्वर्ग में अक्षय तृप्ति प्राप्त होती है। जैसे गयाशिर पितरों के लिए परम तृप्तिदायक है, इसी प्रकार उससे भी अधिक पुण्य देने वाला यह महीसागरसंगम है।
यह पूरी जानकारी ( महिसागर माताजी की महिमा ) मंदिर की दीवार पर भी लिखी हुई है।
अधिक जानकारी के लिए चित्र में दिए गए पते पर संपर्क करें।
References: